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My Megh, Your Megh - मेरा मेघ, तेरा मेघ

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स्यालकोट से पंजाब में आकर बसे मेघ भगतों को बहुत शिकायत रही है कि अब तक लिखे उनके प्राचीन इतिहास में ऐसी कोई बात नहीं बताई गई जिस पर आज की पीढ़ी गर्व कर सके. मैं भी ख़ुद को इस आरोप के निशाने पर पाता हूँ. उनकी बात में तर्क की एक त्यौरी दिखती तो है लेकिन उसकी लकीरें गहरी नहीं हैं क्योंकि किसी समुदाय का इतिहास अचानक शुरू हो कर अचानक समाप्त नहीं होता. इस बात को इस तरह समझ लें कि आप अपना अतीत नहीं जानते तो का अर्थ यह नहीं कि अन्य लोग आपका अतीत नहीं जानते. हमें अपने बारे में जो लिखा हुआ मिला है वह अधिकतर अन्य का लिखा हुआ है जिसे मिटाना कठिन है. एक ही विकल्प है कि आप अपना कुछ इतिहास खुद भी लिखिए जो आपको ठीक-सा लगे.

गरीब समुदायों का पिछला इतिहास उनकी गरीबी में से ख़ुद झांकता है. भारतीय संविधान से मिले प्रतिनिधित्व के अधिकार (आरक्षण) से हुई उनकी वर्तमान उन्नति में उनका बदलता हुआ मौजूदा इतिहास है और उनकी खुद को विकसित करने की क्षमताएँ उनके इतिहास का भविष्य हैं. इतिहास का कोई एक रंग-रूप नहीं होता.

चुनावी राजनीति ने साफ कर दिया है कि जात-पात एक सच्चाई है जिसका प्रयोग करने से वे बाज़ नहीं आएँगे और कि वह समाज का एक टिकाऊ तत्त्व है. जात-पात से अनजान बड़े होते हमारे अबोध बच्चे जब अचानक कहीं इस सच्चाई से रूबरू होते हैं तो उनको लगी चोट और उलझन का कोई अंत नहीं होता कि उनके साथ समाज का एक हिस्सा वैसा गंदा व्यवहार क्यों करता है? उनकी चोट का क्या इलाज है? इलाज यह है कि उन्हें पिछला इतिहास जानने दीजिए और उन्हें सिखाइए कि पहले ऐसा होता था लेकिन अब हमें वैसा व्यवहार स्वीकार्य नहीं है. उन्हें ताकत दीजिए कि वे ऐसी स्थितियों का मुकाबला करें जो उनके आत्मसम्मान पर लगातार चोट करती हैं. दूसरे, उनके लिए ऐसे साहित्य की रचना करते रहें जिससे उनमें आत्मगौरव का उदय होता रहे. यह बहुत ज़रूरी है. लेकिन यह कार्य करेगा कौन? बाहर से आकर कोई उनके 'आत्मगौरवं'या 'स्वाभिमानं'की बातनहीं करेगा. यह कार्य आपको ख़ुद करना होगा. इसके लिए आपको जानकार और प्रतिबद्ध लोगों की ज़रूरत होगी. उन्हें ढूँढिए. मुझे तो उनसे ही अधिक उम्मीद है जो आपका अतीत ढूँढ लाए हैं. उन्हें लिखने की आदत भीहै और वे बेहतर जानते हैं कि करना क्या है. या फिर यह उम्मीद उनसे की जा सकती है जो शिक्षित और प्रशिक्षित हैं और जिनकी जेब में चार पैसे भी हैं.

यहाँ उनके नाम नहीं लिखना चाहता जिनसे अनुरोध किया था कि वे मेघ समाज की सफलताओं की कहानियाँ लिखें या उनके इतिहास के चमकदार पृष्ठों को अलग करके उनका संग्रह तैयार करें. नहीं जानता यदि उनमें से किसी ने कुछ सामग्री तैयार की है. जिन्होंने कुछ लिखा और मेरी जानकारी में आया वह इस ब्लॉग का हिस्सा बन चुका है.

जिन्हें अपनी 'पुरानी कहानी'अच्छी नहीं लगती उनकी भी ज़िम्मेदारी बनती है कि कम-से-कम वे तो अपनी 'नई कहानी'लिखें. भावी पीढ़ियाँ हमारा मूल्याँकन इस बात से नहीं कर पाएँगी कि हमने एक दूसरे को कितना नकारात्मक कहा बल्कि इस बात से उन्हें मदद मिलेगी कि हमने रचनात्मक क्या किया.


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