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A poem from Pablo Neruda - पाब्लो नेरूदा की एक कविता

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मर जाता है वह धीरे धीरे - पाब्लो नेरूदा

मर जाता है वह धीरे धीरे
करता नहीं जो कोई यात्रा
पढ़ता नहीं जो कुछ भी
सुनता नहीं जो संगीत
हँस नहीं सकता जो खुद पर।

मर जाता है वह धीरे धीरे
नष्ट कर देता है जो खुद अपना प्यार
छोड़ देता है जो मदद करना।

मर जाता है वह धीरे धीरे
बन जाता है जो आदतों का दास
चलते हुए रोज एक ही लीक पर
बदलता नहीं जो अपनी दिनचर्या
नहीं उठाता जोखिम जो पहनने का नया रंग
नहीं करता जो बात अजनबियों से।

मर जाता है वह धीरे धीरे
करता है जो नफरत जुनून से
और उसके चक्रवाती जज्बातों से
उनसे जो लौटाते हैं चमक आँखों में
और बचाते हैं अभागे हृदय को।

मर जाता है वह धीरे धीरे
बदलता नहीं जो जीवन का रास्ता
असंतुष्ट होने पर भी अपने काम से या प्रेम से
उठाता नहीं जो जोखिम अनिश्चित के लिए निश्चित का
भागता नहीं जो ख्वाबों के पीछे
नहीं है अनुमति जिसे भागने की
लौकिक मंत्रणा से जिंदगी में कम से कम एक बार।

जियो आज जीवन! रचो आज!
उठाओ आज जोखिम
मत दो मरने खुद को आज धीरे धीरे
मत भूलो खुश रहना !!

अनुवाद - प्रतिभा उपाध्याय

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