भारतीय मार्क्सवाद को इस नज़र से भी देखना चाहिए कि जब यह भारत में आया तो किसकी राह से चल कर आया. उस समय भारत की पढ़ी-लिखी जमात कौन सी थी और पूँजी पर लागू दर्शन किस का था. क्या वह वर्ग (भारत के संदर्भ में ब्राह्मण) मार्क्सवाद को कमेरे वर्ग तक ले जाने के हिमायती थे? भारत में गठित वामपंथी पार्टियाँ किन के हाथों में रहीं और क्या उन्होंने मार्क्सवाद को लोगों तक ले जाने में ईमानदारी बरती? जातिवाद के मारे इस देश में क्या वे कह पाते कि भारतीय संदर्भ में पूँजीवाद का असली नाम ब्राह्मणवाद (जातिवाद) है?
डॉक्टर अंबेडकर ने जो कार्य किया वह वामपंथी राजनीतिक पार्टियों की विचारधारा के साथ जाता है या नहीं यह कहना मुश्किल है .लेकिन एक बात समझ में आती है कि वामपंथी पार्टियां आजकल चल रहे अंबेडकरवादी आंदोलन के विरोध में कहीं नजर आ सकती हैं. ऐसी आशंका बनी रहेगी. हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला के संदर्भ में दिखा तत्संबंधी प्रयोग अपनी शैशव अवस्था में है. कुछ ओबीसी बुद्धिजीवी इसे एक सफल होते सोशल इंजीनियरिंग के माडल के रूप में देख रहे हैं.
डॉक्टर अंबेडकर ने जो कार्य किया वह वामपंथी राजनीतिक पार्टियों की विचारधारा के साथ जाता है या नहीं यह कहना मुश्किल है .लेकिन एक बात समझ में आती है कि वामपंथी पार्टियां आजकल चल रहे अंबेडकरवादी आंदोलन के विरोध में कहीं नजर आ सकती हैं. ऐसी आशंका बनी रहेगी. हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में रोहित वेमुला के संदर्भ में दिखा तत्संबंधी प्रयोग अपनी शैशव अवस्था में है. कुछ ओबीसी बुद्धिजीवी इसे एक सफल होते सोशल इंजीनियरिंग के माडल के रूप में देख रहे हैं.